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मत्स्यपा॑यि ते॒ मह॒: पात्र॑स्येव हरिवो मत्स॒रो मद॑:। वृषा॑ ते॒ वृष्ण॒ इन्दु॑र्वा॒जी स॑हस्र॒सात॑मः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

matsy apāyi te mahaḥ pātrasyeva harivo matsaro madaḥ | vṛṣā te vṛṣṇa indur vājī sahasrasātamaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मत्सि॑। अपा॑यि। ते॒। महः॑। पात्र॑स्यऽइव। ह॒रि॒ऽवः। म॒त्स॒रः। मदः॑। वृषा॑। ते॒। वृष्णे॑। इन्दुः॑। वा॒जी। स॒ह॒स्र॒ऽसात॑मः ॥ १.१७५.१

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:175» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:18» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजविषय को प्रकारान्तर से कहते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (हरिवः) प्रशंसित घोड़ोंवाले ! (महः) बड़े (पात्रस्येव) पात्र के बीच जैसे रक्खा हो वैसे जो (ते) आपका (मत्सरः) हर्ष करनेवाला (मदः) नीरोगता के साथ जिससे जन आनन्दित होते हैं वह ओषधियों का सार अपने (अपायि) पिया है उससे आप (मत्सि) आनन्दित होते हैं और वह (वाजी) वेगवान् (सहस्रसातमः) अतीव सहस्र लोगों का विभाग करनेवाला (वृष्णे) सींचनेवाले बलवान् जो (ते) आप उनके लिये (वृषा) बल और (इन्दुः) ऐश्वर्य करनेवाला होता है ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे घोड़े दूध आदि पी, घास खा बलवान् और वेगवान् होते हैं, वैसे पथ्य ओषधियों के सेवन करनेवाले मनुष्य आनन्दित होते हैं ॥ १ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयं प्रकारान्तरेणाह ।

अन्वय:

हे हरिवो महः पात्रस्येव यस्ते मत्सरो मदस्त्वपायि तेन त्वं मत्सि स च वाजी सहस्रसातमो वृष्णे ते वृषेन्दुर्भवति ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मत्सि) हृष्यसि (अपायि) (ते) तव (महः) महतः (पात्रस्येव) यथा पात्रस्य मध्ये (हरिवः) प्रशस्ताश्व (मत्सरः) हर्षकरः (मदः) मदन्ति हर्षन्ति नैरोग्येण येनाऽसौ (वृषा) बलकरः (ते) तुभ्यम् (वृष्णे) सेचकाय बलवते (इन्दुः) ऐश्वर्यकरः (वाजी) वेगवान् (सहस्रसातमः) अतिशयेन सहस्रस्य विभाजकः ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथाऽश्वा दुग्धादिकं पीत्वा घासं जग्ध्वा बलिष्ठा वेगवन्तो जायन्ते तथा पथ्योषधिसेविन आनन्दिता भवन्ति ॥ १ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात राज्यव्यवहाराच्या वर्णनाने या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे घोडे दूध इत्यादी पितात, गवत खातात व बलवान व वेगवान होतात तसे पथ्य करून औषधींचे सेवन करणारी माणसे आनंदित होतात. ॥ १ ॥